Pratush koul
Jun 28, 2021

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अनजान/अमर

कलम काकज़ और किताब यहां
कलाकार की कला के दीदार यहां
उन जिनाब से पूछो जो हे दूर अकेले
कि मुर्दों के दस्तख़त क्या मिलेंगे यहां?

जिस्म को न मिला कोई सहारा
न हुए तन को दो जोड़ी नसीब
बस एक सूखे फूलों की माला
जो रह गई इस टूटे दिल के करीब

आखिर मैं जब किताब न खुली
न दौड़ा कलम काकज़ पर
अपनो के चेहरों पर दिखी वो शिकन
जैसे सिलवटे हो किसी बिस्तर पर

जब जिस्म था राख बनकर झेलम पर सवार
चील और गिद्ध बने दोस्त उस मौके पर
जिसकी झूठी थाली न छूता था कोई
कफन भी हुआ था नीलाम उस मौके पर

~प्यासा फिल्म का दृश्य

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Written by Pratush koul

Scribbling sentences which are in solidarity with solitude.

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