Pratush koul
Mar 13, 2021

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अगर घर ऐसा हो तो ना हो
ना हो ऐसा घर कोई
जो याद दिलाए घर की
ऐसा घर ना बनाए कोई

ना हो ऐसे बागान बहार
जो लाए बाहर बैरागी को
जो गाए राग और बहार लाए
एसे बाग ना बनाए कोई

जो याद दिलाए दिल का चैन
उस चैन को दिल में उतारो नही
उस दिल का रंग दीवार ना देखे
ऐसी दीवार तो बनाओ कोई

हर दरवाजे पर नाम ना लिखो
लिखो तो कोई मिटाए नहीं
सालो रहे उस दरवाजे की शान
ऐसा नाम तो पहले बनाओ कोई

नींदों में देखे है घर के सपने
सपनो को हकीकत मानो नहीं
मानो तो घर को सपना मानो
जिसकी नींद से ना जगाए कोई

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Pratush koul
Pratush koul

Written by Pratush koul

Scribbling sentences which are in solidarity with solitude.

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