Pratush koul
2 min readSep 30, 2021

अ शांत अशांति

कि शायद शोर सही नही अभी
या शांति हो गलत कभी नही?
मैं शांत न हूं तो क्या हूं? एक शांत मूरत जिसे पूजो शोर के आंगन मैं। किसी की याद मैं लिखते हुए खत का शोर ढूंढ ही लेगा कोई इन शांत बागानों मैं। मैं दरखत नही जो टूट जाऊ। मैं आशिक नही जो रूठ जाऊ। मैं तो शोर हूं। किसी नाच गान के बहाने तुमसे कहूं
इस सन्नाटे की आहट को किसी कि करवट मैं छुपा लो
कि आज कईं दिनों बाद उसकी सदा ने महफिल जमाई है।

मैं अशांत भी तो नही। अपने कानो को हाथो तले मीचते हुए चला आता हूं। फितरत और आदत की कश्मकश के बीच, फिर उस शोर के आगोश मैं ताकि सुन सकू, उस खामोशी के चूबते हुए बोल। शोर तो मुझमें है। मेरे मन के अंदर। कुछ न होने का शोर। खयालों को ख्वाबो और ख्वाहिशों को खामोशियों मैं पिस्ते देख उनकी चीख पुकारो का शोर

पर फिर भी मैं चल पड़ता हूं। शांति और अशांति को साथ लिए जैसे दो बहने हो मेरी। पर मैं तो भाई नही किसी का। तो मैं कोन? शांति और अशांति है कोन? कुछ कदम और चल लेता हूं। शायद मंजिल मेरा इंतज़ार कर रही हो... राखी की थाल अपने हाथो मैं लिए।

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तेरा ज़िक्र हुआ है बड़े दिनों बाद यहां
आज मुझे भी अपनी घड़ियां सजा लेने दे
वक्त ले ना जाए खुदसे दूर तुझे भी कहीं
इस बाज़ार ए शोर मे एक घड़ी गुज़ार लेने दे
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Pratush koul
Pratush koul

Written by Pratush koul

Scribbling sentences which are in solidarity with solitude.

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